Jai Kishor Rankawat जी की कलम से -
काफी हद तक सच है कि एक आर्टिस्ट ही कैरेक्टर की आत्मा होता है। जिस आर्टिस्ट के कारण कैरेक्टर को पहचान मिलती है उसके चले जाने से कैरेक्टर भी निष्प्राण सा हो जाता है। इसका उदाहरण हमारा 'नागराज' भी है। मोहक और सजीला सा नागराज मुलिक जी के बाद किस तरह ' हल्क' में बदल गया किसी से छुपा नहीं है।
बेदी जी के बाद बांकेलाल खत्म सा हो गया।
मनु जी के बाद परमाणु और डोगा बेदम से हैं।
प्राण जी के बाद चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी में वो अपनापन नहीं लगता।