संदीप जुयाल जी की कलम से
वाकई में क्लासिक नागराज का कोई तोड़ नही है उसके आगे सच बताऊँ तो आज का और महानगर का नागराज फीका ही लगता है फिर बात करे आर्टवर्क की या कहानी की नए कैरेक्टर्स नए विलेन्स नई नई जगह एक्स्प्लोर करना वाकई में एक मजेदार अनुभव था। मैंने बचपन मे अनुपम जी का नागराज ही पढा था और मुझे पसंद भी आता था। लेकिन जब मैंने क्लासिक नागराज पढ़ा करीबन 6,7 (ठीक से याद भी नही है अब) पहले तो मैं अनुपम जी की कहानी को भूल गया क्योंकि क्लासिक नागराज में ठहराव नही था उसे पता लगता कि इस जगह आतंकवादी गतिविधिया हो रही है वो निकल पड़ता था बिना सोचे समझे की यहां से आतंकवाद को उखाड़ फेंकना है तब उसके आगे पीछे कोई नही था पर महानगर में जाने के बाद वो भारती कम्युनिकेशन में जॉब करने लगा उसकी लाइफ में भारती और विसर्पी की इम्पोर्टेंस ज्यादा बढ़ गई बजाय इसके की बाकी दुनिया मे आखिर क्या हो रहा है क्या नही उसे फर्क नही पड़ता वो भी मोह माया के जंजाल में फंसकर हमारे जैसा ही बन गया और अपने असल कर्तव्य से भटक गया या भटका दिया गया। क्लासिक का अंदाज ही निराला था आज के नए रीडर्स को क्लासिक पसंद नही आता लेकिन जिसने भी उसे बारीकी से पढ़ा होगा उसे उसकी इम्पोर्टेन्स समझ मे आएगी मैंने खुद उसे इस जमाने मे ही पढा है और यकीन मानो मुझे वो नागराज सब नागराज पर भारी लगता है आर्ट और कहानी के मामले में, अपने प्रतिद्वन्दी को पहला मौका देना, प्रतिद्वन्दी को अपने मार्शल आर्ट से आश्चर्यचकित कर देना, अपने दिमाग और साहस से हर समस्या का समाधान करना अपने स्टाइल में यहां तक कि अपने दुश्मन को सेल्यूट तक करना वाकई में जबरदस्त लगता था नागराज का अपना ही एक स्टाईल था नागों का पैराशूट बनाना और ओवरकोट में तो लगता ही जबर था वो बंदा लेकिन अब हालत यह है कि नागराज जैसे इतने बड़े हीरो को पढ़ने का मन तक नही करता है। हर राइटर अपने मन से ही लिखे जा रहा है नागराज को 3,4 नागराज बनाने से बढ़िया था 1 ही नागराज पर मेहनत कर लेते तो आज नागराज की स्तिथि कुछ और ही होती ।।