मुझे ठीक से याद नहीं पर ये बात शायद 2012- 2013 की होगी मैं कॉमिक्स की तलाश में अपने दोस्त Nafis Ahmed के साथ पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिये निकला , स्टेशन के हर बुक स्टाल पे देखा, पर मुझे मुलिक जी वाले नागराज का पुराना कलेक्शन नहीं मिला , बहुत दुख हुआ की जिस मकसद के लिये आया था वो पूरा नहीं हुआ , बहुत ढूंढा पर मुझे मेरे क्लासिक नागराज का कलेक्शन नहीं मिल रहा था। मैं थक हार कर रेलवे स्टेशन की सीढ़ियों पर बैठ गया, मुझे उदास देखकर मेरे दोस्त नफीस अहमद ने "कहा " हमने जो स्टेशन से कॉमिक्स खरीदी है उनमें में एड्रेस देख नागराज नावल्टीज़ है कहाँ वहीँ चलते है, एड्रेस देखने के बाद पता चला हम नागराज नावल्टीज के पास ही है ।फिर क्या था नागराज का कलेक्शन पूरा करने मैं नागराज नावल्टीज (दरीबा कलां ) पहुँच गया । दरीबा कलां की भीड़ भरी गली में पहुँचते ही मैंने कॉमिक्स निकाल के वहाँ बैठे दो लोगो से पता पूछना चाहा ।
मेरे हाथों में कॉमिक्स देखते ही उन्होंने बिना पूछे मुझे ऊपर जाने का इशारा किया । सीढ़ियों से ऊपर जाते ही मैं अपनी कॉमिक्स की जन्नत में पहुँच चुका था ,नागराज नावल्टीज जिसके बारे में मैंने बचपन में सिर्फ सुना और कॉमिक्स में पढ़ा था मैं वहाँ आ गया था । जहाँ मुझे विश्वास था की मेरा नागराज कलेक्शन पूरा हो जायेगा , बस फिर क्या था मैंने मुलिक जी वाले नागराज की कॉमिक्स के नाम दनादन लेने शुरु कर दिये । और उन्होंने भी जल्दी ही मुझे मेरी लिस्ट की सारी कॉमिक्स निकाल के दे दी ,सिवाय नागराज और कालदूत और बच्चों के दुश्मन के ये दो कॉमिक्स उस वक़्त उनके पास उपलब्ध नहीं थी । फिर मैं कॉमिक्स की गिनती करने लगा ,और जो मैंने देखा वो देख कर मुझे कितना बुरा लगा और कितना गुस्सा आया मैं बता नहीं सकता खूनी खोज, खूनी यात्रा , और प्रलयंकारी मणि का कवर पेज चेंज कर दिया गया था , मैंने तुरंत उसे चेंज करके पुराने कवर वाली कॉमिक्स मांगी । दुकानदार के चहेरे पर अलग सी मुस्कान थी ,जैसे मुझ से पहले भी ये बदले हुए कवर की कॉमिक्स औरों ने वापस की हो ,पर दया थी महादेव की मुझे तीनों कॉमिक्स पुराने कवर पेज के साथ मिल गयी थी....😀 हर हर महादेव....😊😊😊😊😊
जहां तक मेरे विचार है तो कभी भी कॉमिक्स के मूल कवर को नही बदलना चाहिए।
ReplyDeleteकॉमिक्स का ओरिजिन कवर कॉमिक की आत्मा होती है। हमारी याद में संजोया रहता है। उसके बदलने पर कॉमिक का बिना जान वाले शरीर की feel hi आती है।
ReplyDeleteYaad h mujhe bhai vo din.pure din yahi sochte rahe laute samay ki kaash do comics aur mil jati ....
ReplyDeleteदोस्त दिल भर आता है ऐसे किस्से पढ़ कर, अब तो प्रिंटेड कॉमिक्स तो जैसे परीकथाओं जैसी हो गयी है
ReplyDeleteवो भी क्या दिन थे जब राज की स्टोरी कॉमिक्स 3 रुपये की और नागराज की 4 रुपये की आती थी, आज ये रकम हमारे बच्चे तक नही लेते है लेकिन हमको इन्हें भी जुटाने मैं हमारी जान निकल जाती थी उसके बाद नागराज की कॉमिक्स 5 की फिर 6 की और लास्ट 7 रुपये की मिली
विषेषांक काफी समय तक 15 फिर 16 फिर 20 और अब तो 60 रुपये की मिलती है शायद और साइज भी छोटा कर दिया
खैर दोस्त शानदार पोस्ट
Pratap sir ji ke shaandar artwork ko anupam sir ke is wahiyat art se replace karne ki wajah mujhe kuch samjh nhi aayi🤔🤔
ReplyDeletebahot badiya bhai ji aapka jana safal hua aap ko apni cheez mil gai
ReplyDeleteWaah
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