Friday, March 31, 2023
यादें न जाए बीते दिनों की ❤️
Manoj Manjhi जी की कलम से---------------
हर दिन दुकान के चक्कर लगाने से कोई फायदा ना था, क्योंकि रोज तो कॉमिक्स मिलने से रहीं.
तब मालूम पड़ा कि लायब्रेरी करके कोई चीज भी होती हैं.
मगर कहाँ...
कोई आयडिया नहीं था.
पड़ोस के एक अंकल नोवेल्स लेकर आते थे, पढ़कर लौटा देते थे. पूछने पर बताया कि कुछ रुपये डिपॉजिट करने होते हैं, फिर कॉमिक्स किराये पर मिलती है.
डिपॉजिट कितना 2 या 3 रुपये.
रुपये जमा हुए, उनके साथ ठिकाने तक आया कॉमिक्स के ढेर, तब डायमंड वा इन्द्रजाल कॉमिक्स की बहुतायत थी.
रुपये दे कॉमिक्स छांटने लगा मगर कौन सी लूँ, समझ नहीं आया..
खैर दो कॉमिक्स ली जिसे छुपाकर घर ले आया. पढकर रिटर्न की
फिर तो दोस्त कम खेलना कम केवल कॉमिक्स.
अमर चित्रकथा का जिक्र खासतौर पर करना जरूरी है, क्योंकि उनकी वज़ह से भारतीय इतिहास का सकल जानकारी मिली. एतिहासिक व पौराणिक कथाओं चित्रों में कहीं खो गया मै....
पेड़ों पर भी बैठ कर पढ़ी है कॉमिक्स.
वेताल मेरा पसन्दीदा किरदार हुआ कर्ता था, आज भी है.
कभी कभी किसी पेज पर किसी पात्र के बोलने को दर्शाता खाली बैलून मिला तो मन मुताबिक लिख देता था.
कमी कोई पेज उल्टा छपा होता था तो आईने में देख के पढ़ना, वह अलग मजा देता था.
कितना प्यारा था वो बचपन
राजन इकबाल, चाचा चौधुरी, चन्दामामा, पराग, गुड़िया, दीवाना व उसकी chipkiya, दिल्ली से आती थी हास्य अटेक पत्रिका जिसमें लिखकर भेज देता था कुछ जोक्स, मधु मुस्कान में जगदीश साहब, हुसैन जामिन सर, हरीश एम सूदन जी.
मेरे पत्र व एक स्टोरी भी छापी गयी थी,पोपट-चौपट के साथ जगदीश जी आर्टिस्ट थे.
इस लेख को लिखते समय मैं वापस अतीत में चला गया हूँ.
क्या कुछ छूटा, क्या भूला कहाँ भूला अब याद नहीं आ रहा है.
अब भी कुछ चन्दामामा हिन्दी, मराठी में, डायमंड के कुछ कॉमिक्स महफूज़ है मेरे पास.
बस अब और ज्यादा लिख ना सकूँगा.... ☺️
वर्ना रो दूंगा.
Thursday, March 30, 2023
गर्मियों की छुट्टी में कॉमिक्स के मजे
Devraj Sharma जी की कलम से
याद आती है वो देसी लाइब्रेरी जो गर्मी आते ही हर चौक पर खुल जाती थी..50 पैसे किराया.. इस बात का डर की 24 घंटे से ज़्यादा हो गए तो 1 रुपये लग जाएंगे..
दोस्तों का शानापन... 4 दोस्त मिलकर 4 अलग अलग कॉमिक्स लाएंगे और पढ़ने के बाद एक्सचेंज कर लेंगे।
लाइब्रेरी वाले का शानापन... नई हिट कॉमिक्स आएगी तो सिर्फ 4 घंटे के लिए किराये पर देगा..वो तपती धूप में कॉमिक्स के लिए सूरज से लड़ना.....गर्मियों की छुट्टियों में तरह तरह की कॉमिक्स पढ़ते थे और हर कॉमिक्स में कोई न कोई सकारत्मक सोच होती थी...
हमारे एक्शन सुपर हीरोज में सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, तौसी, साबू, डोगा के साथ साथ कुछ कॉमेडी किरदार भी थे जिनमें रमन, पिंकी, चाचा चौधरी, बांकेलाल के साथ और भी ढेर सारे रहे हैं.
पढ़ते पढ़ते हम उन्हीं की दुनिया में खो जाया करते थे जैसे वो भी हमें देख समझ रहे हैं... कई बार जब कोई पुरानी कॉमिक्स फट जाती थी तो उसके किरदार जैसे नागराज, ध्रुव, डोगा, तौसी या फिर अपना बिल्लू उनकी फोटो कैंची से काटकर अपनी अलमारी या दीवार पे चिपका दिया करते थे.
हर साल अखबार से लेके पुराने कोर्स की किताब कॉपियां हम रद्दी में बेच दिया करते थे लकिन हमारी इकट्ठी की हुई कॉमिक्सें कभी रद्दी का हिस्सा नहीं बनीं फिर बेशक कितनी भी कट-फट गईं हों..
बहुत कुछ है ऐसा जेहन में है जो जिया है... फिर से बताऊंगा जो हमसे और आप सबसे मिलता जुलता है काफी हद तक! काफी कुछ है हम सभी के दिल में कुछ पुराना सा जिसे बस अपने शब्दों में लिख डालने की देर है. बाकी हम तो हैं ही बार बार कुछ पुराना सा याद दिलाने के लिए... टटोलते हैं वो ही कुछ पुरानी सी रद्दियां जो मन में दबी पड़ी हैं! 😀
आपकी favorite मैगज़ीन या पत्रिका कोन सी थी ?
दूरदर्शन ने दिया मुझे मेरा सबसे पहला सुपरहीरो
Devraj Sharma जी की कलम से--------
नागराज से पहले मेरा पहला सुपर हीरो
ही मैन
जब ही मैन दूरदर्शन पर आता था तब मैं शायद KG का स्टूडेंट था और कॉमिक्स का नाम तक नही जानता था, उस समय TV पर ही मैन आता था और बस वही मेरा सुपर हीरो था, आज भी स्केलेटन, ऑर्कु सभी याद है, ही मैन का शेर, एक लेडी कैरेक्टर
जो ही मैन की साथी हुआ करती थी, ऊपर भी बता चुका हूं कि उन दिनों मैं बहुत छोटा था और हर संडे 20 मिनिट के इस कार्टून को देखकर ज्यादा कहानी तो पल्ले नही पड़ती थी, लेकिन हाँ इतना पता पड़ जाता था कि ही मैन एक हीरो है और स्केलेटन उसका खास दुश्मन जो उसको हराने के नए नए प्रपंच करता है,
वैसे ही मैन एक नार्मल इंसान की तरह ही दिखता है, लेकिन जब कोई मुसीबत आती है तो उसके मुँह से एक ही चिल्लाहट निकलती थी शायद 'give me the power' और इतना बोलते ही उसके अंदर एक शक्ति का संचार होता है जिसकी बदौलत ही मैन साधारण से बहुत पावरफुल बन जाता है, हाथ में तलवार आ जाती है और उसका भोला सा दिखने वाला शेर भी खूंखार और बड़ा हो जाता है और फिर वो विलेन को धूल चटा देता है
और संडे को ही मैन का कार्टून देख कर मैं बाहर निकलकर एक हाथ में एक लंबी लकड़ी लेकर चिल्लाता था I am a He Man....Master of the Universe
ऐसा चिल्ला कर एक अलग ही अलौकिक आनंद मिलता था
फिर समय बीतता रहा और मैं थोड़ा बड़ा हो गया लगभग 2nd क्लास में आ गया और उन्हीं दिनों से कॉमिक्स मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गयी
इसी सफर के चलते राज कॉमिक्स ने एक कैरेक्टर को लांच करने से महीनों पहले उसका बहुत प्रचार किया, उस चरित्र का नाम था "भौकाल".....उसकी जब पहली कॉमिक्स खौफनाक खेल पढ़ी तो उसमें आलोप को भौकाल चिल्लाकर भौकाल बनते और उसके हाथ मे तलवार आते जब पहली बार देखा तो कसम से ही मैन याद आ गया
हमारा भौकाल हमारी नजरो मे इंडियन ही मैन बन गया और हमारे लिए एक ही मैन बंद हुआ तो कॉमिक्स ने हमको दूसरा ही मैन दे दिया जिसको हमने बहुत एन्जॉय किया
तुरीन हमारी किशोरावस्था की क्रश बन गयी वहीं शूतान, अतिक्रूर, कपाला, पीकू, फुचांग, विकास मोहन, राजकुमारी श्वेता इत्यादि को भी बहुत एन्जॉय किया
बस दोस्तो बातें तो मेरे पास है बहुत लेकिन समय है कम, अतः मेरे इस ब्लॉग को मुझे यहीं पर ही विराम देना होगा
धन्यवाद
आपका दोस्त
देवराज शर्मा
b>

Tuesday, March 28, 2023
मेरे 26 वर्षों के कॉमिक्स पाठन के सबसे यादगार पलों में से एक पल।
मेरे 26 वर्षों के कॉमिक्स पाठन के सबसे यादगार पलों में से एक पल।
ये सीन हमेशा मेरे दिल और दिमाग मे रहता है।
जब छोटा था, तो कल्पना करता था कि अगर मैं नागराज होता और ये पल मेरे साथ घटित होता तो बहुत मजा आता।
अधिकतर कॉमिक्स प्रेमियों ने सबसे पहले चाचा चौधरी, चम्पक, नंदन जैसी पत्रिकाएं पढ़ी होंगी,
परन्तु मेरे कॉमिक्स प्रेम की शुरुआत ही नागराज के साथ हुई थी,
और वो भी उसकी पहली कॉमिक #नागराज के साथ।
मुझे मौलिक नागराज ही पसन्द है
ख़ासकर उसका ओवरकोट और बालों का स्टाइल।
उसकी तरह नाग के फन जैसा हेयर स्टाइल जब एकाध बार मेरा बन जाता था, तो मैं उसे बार बार आईने में तो देखता ही था बल्कि पैदल चलते चलते भी उस की परछाई को देखते हुए चलता था और खुद को नागराज समझता था।
स्वर्णिम युग था वो, ना केवल राज कॉमिक्स का बल्कि सम्पूर्ण भारतीय कॉमिक्स पब्लिकेशन्स का
कॉपीराइट #राजकॉमिक्स
कॉमिक #ख़ूनीजंग
Joginder Sharma जी की कलम से
Subscribe to:
Posts (Atom)