Monday, August 5, 2024
नागराज और अदृश्य हत्यारा
Jai Kishor Rankawat जी की कलम से...............आज एक बड़ी डरावनी याद शेयर कर रहा हूँ... नागराज और अदृश्य हत्यारा के लिए जो झेला मैंने उसी के बारे में बताने जा रहा हूँ।। एक रोज मेरे दोस्त ने मुझसे कहा कि "मेरे पास नागराज और अदृश्य हत्यारा कॉमिक आने वाली है... अगर पढ़नी हो तो शाम को मेरी दुकान पे आ जाना।" उसके कपड़ों की दुकान थी और अक्सर हम कॉमिक शेयर किया करते थे। अब दुर्भाग्य से (मेरे लिए दुर्भाग्य) उसी दिन शाम को मुझे मम्मी पापा के साथ 'बनोरी' मे जाना था। बनोरी/बंदौली हमारे यहां उसे बोलते है जब दूल्हा घोड़ी पे बैठ कर बैंड बाजे के साथ निकलता है। जिसे निकासी भी कहते है। तो भई... बुझे मन से मैं बनोरी में शामिल हो गया। मम्मी पापा के साथ साथ चल रहा था। लेकिन मन नागराज और अदृश्य हत्यारा में अटका था। दिल कर रहा था भाग के मेरे दोस्त की दुकान पे चला जाउ और हाथों हाथ कॉमिक पढ़ डालू। दरअसल मेरे शहर में कॉमिक की बड़ी मारा मारी सी रहती है। गिनी चुनी 2 दुकाने थी जहां कॉमिक मिलती थी। कई बार हमें पॉपुलर कॉमिक मिल ही नही पाती थी। इसलिए मुझे ये डर था कि क्या पता कल ये कॉमिक मुझे मिले न मिले।। यही सब सोचते हुए मैं बनोरी में चला जा रहा था। चलते चलते वो मोड़ आ ही गया जिस पर मुड़ते ही मेरे दोस्त की दुकान पड़ती थी। बनोरी सीधी निकलनी थी और मेरा मन मुझे दुकान की तरफ मुड़ जाने को कह रहा था। बस इसी पल मेरा मन भारी पड़ गया और मैं चुपके से मम्मी पापा को बिना बताए भीड़ का लाभ उठाकर दोस्त की दुकान की तरफ मुड़ गया। दुकान पर पहुंचते ही मैंने अदृश्य हत्यारा हाथ मे ले ली और जी भर के उसे निहारा। फिर इत्मीनान से उसे बड़े मजे लेकर पढ़ा। जी खुश हो गया था मेरा। कॉमिक पूरी कर के दोस्त से टाइम पूछा। 7 बज गए। अब मैं बड़ी दुविधा में था। घर जाऊँ??? तो ताला होगा वहां।।। और बनोरी किस जगह गयी ये मुझे पता नहीं था। तो मैंने दोस्त की दुकान पे ही बैठे रहना उचित समझा। धीरे धीरे 8 बज गए। उसकी भी दुकान बंद होने का टाइम हो गया। अब मैं भारी कदमों से घर रवाना हो गया। इस बात से अनजान की मम्मी पापा पे क्या बीत रही होगी। मैं यही समझ रहा था कि वो लोग बनोरी में जाकर भोजन वगेरा कर के घर चले जायेंगे। अब मैं घर पहुंचा....
घर के बाहर पिताजी स्वागत के लिए तैयार खड़े थे...
मम्मी घर के बाहर ही चौकी पे रुआंसी बैठी थीं। मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज उठा। मैं तेजी से भाग कर घर मे घुस जाना चाहता था। लेकिन मुझे पकड़ लिया गया। कसम से बिना कुछ पूछे... बिना कुछ बोले मेरी जो सुताई हुई... बाप रे.... कपड़ों की धुलाई भी शरमा गयी।। फिर शुरू हुआ लेक्चर का दौर... मुझे बताया गया कि.... कैसे मुझे बनोरी में न पाकर उनके हाथ पांव फूल गए थे। हाथो हाथ बनोरी छोड़ कर उन्होने सारे शहर में मुझे ढूंढना शुरू कर दिया था। मेरी चिंता में उनका खाना पीना हराम हो गया था। मम्मी की तो हालत ही खराब हो गयी थी। बस थोडा और मैं लेट हो जाता तो पुलिस में रिपोर्ट कराने जाने वाले थे। आज मुझे इस बात की गंभीरता का एहसास होता है कि मैंने कितनी बड़ी नादानी की थी। लेकिन कुछ भी हो.... मैंने नागराज और अदृश्य हत्यारा पढ़ ही ली।😀
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