Saturday, February 1, 2025
Recollections
Jay Mittal जी की कलम से....
Recollections.
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नब्बे के दशक में कॉमिक्स खरीद पाना अपने आप में एक लक्ज़री था, ऐसे में कोई कहानी जो एक किताब में पूरी ना हो खरीदना बहुत बड़ा रिस्क था, क्या पता सिरीज़ पूरी कितने भागों में हो और जब बाकी के भाग आयें तब आपके पास पैसे हों न हों। क्या पता तब एक्ज़ाम्स हो रहे हों। मगर डोगा की पहली कॉमिक कर्फ्यू जब आई तो वो घातक तरीके से हाईप्ड थी, ये शायद ध्रुव की पागल कातिलों की टोली वाले सेट में थी और इसका इंतज़ार हम कई महिनों से कर रहे थे।
इसके पहले मनु का आर्ट हम देख चुके थे मगर यहाँ बात ही कुछ और थी और उस पर संजय गुप्ता सर की दमदार कहानी और उस पर तरुण कुमार वाही जी की शानदार पटकथा, सवाल ही पैदा नहीं होता कि ये किताब न ली जाये। भला हो एक रिश्तेदार का जिन्होंने जाते जाते ग्यारह रुपये थमा दिये थे - सो कर्फ्यू और पागल कातिलों की टोली दोनो ली जा सकती थी बारह रुपयों में, साथ में स्टिकर्स तो थे ही।
ऐसे शुरुआत हुई डोगा से इश्क की।
एक के बाद एक किताबें आती रहीं और तीन भागों में डोगा का शानदार ओरिजिन बहुत जल्द मेरे कलेक्शन का हिस्सा बन गया। ये फर्स्ट एडिशन करीब 25 सालों तक मेरे साथ बना रहा।
जब मैं कुछ एक साल पहले अपनी डोगा स्क्रिप्ट ले कर मनु जी से मिला, तो मैंने ये तीन किताबें ऑटोग्राफ करने के लिये उन्हें दीं और अचानक कर्फ्यू के भीतर से ये स्टिकर फिसल कर निकल आया और हम दोनों ही चकित रह गये।
ये किताबें मेरी पर्सनल टाईम मशीन हैं शायद और जब इन्हें देखता हूँ तो अचानक मैं खुद को भिलाई की तपती धूल भरी दुपहरियों में खड़ा पाता हूँ - जहाँ शायद हर समस्या को इन कॉमिक्सों ने हल नहीं किया बल्कि उन्हें जड़ से उखाड़ दिया...💖💥💖💥💖💥💖
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