आर विवेक आर जे जी की कलम से❤️
90s में कॉमिक्स गली मोहल्ले, रेलवे स्टेशन, बस स्टेंड, बड़ी छोटी परचून की दुकान,स्टेशनरी की दुकान, यहां तक कि हमारे मोहल्ले के सैलून वाले भी कॉमिक्स बेचते या किराए पे दिया करते थे।
ये वो दौर था जब न मोबाइल न केवल टीवी हुआ करती थी। टाइम पास का अच्छा खासा जुगाड। महीने में दो सेट यानी 12 या 16 कॉमिक्स आती थी एक पब्लिकेशन की और डायमंड,राज,मनोज,तुलसी,राधा,परंपरा,पवन,नूतन,फोर्ट और अनेक पब्लिकेशन हुआ करते थे।।
सुनहरे दिन।
सुनहरी यादें।।
लेकिन तब इन दुकानों पे पोस्टर,बैनर, लड़ी झड़ी,स्टीकर, एलाना,फलाना, दुनियां भर का प्रचार करता था।
एक समय मैंने भी शॉप खोली थी कॉमिक्स की तो उन्होंने झोला भर के नोवल्टी,झालर पोस्टर बैनर ऐसे ही फ्री में दिए दे दिए थे।
कि जाओ ले जाओ सजा दो दुकान को।।
और आज कल।।??
कॉमिक्स जगत डूब गया।
सिर्फ एक पब्लिकेशन मार्किट में जिंदा है।
वो जिस मर्जी प्राइस में दे
लेना पड़ेगा।
वो फ्री नोवल्टी न दे।
तब भी कॉमिक्स खरीदना पड़ेगा।
कुछ सपोर्टर कहते है कि कॉमिक्स ही घाटे में जा रही है तुम्हे फ्री नोवल्टी की पड़ी है बे लालची।।।।।।।।
तो एक उदाहरण।।।।
नत्थू राम हलवाई की पूड़ी बहुत बढ़िया थी।
साथ में आलू की सब्जी,हरी चटनी, लाल चटनी, मिर्च का अचार।
दबा के पूड़ी बिका करती थी।।।
फिर धीरे धीरे नत्थू राम जी समझे कि कस्टमर तो पूड़ी के पैसे देता है अचार तो फ्री में देना पड़ता है।
तो उन्होंने अचार देना बंद कर दिया।।
कोई बात नही।
फिर नत्थू राम जी ने सोचा कस्टमर तो पूड़ी के पैसे देता है। चटनी तो फ्री में जा रही है।
चटनी भी बंद।
सेल थोड़ी सी गिरी लेकिन नत्थू राम जी ने सोचा कोई बात नही अचार ,चटनी तो बच ही रही है।
फिर नत्थू राम जी ने सोचा कस्टमर तो पूड़ी के पैसे दे रहा है सब्जी तो फ्री में जा रही है।
फिर सब्जी भी बंद।।।।।
अब?????
कस्टमर कैसे बिना सब्जी के पूड़ी खाए।
मत खाओ बहुत है नत्थू राम जी के पास तो कस्टमर।।।
धीरे धीरे नत्थू राम जी जो 90s में 10 हजार पूरी रोजाना बेचते थे आज वो ही नत्थू राम जी दिन भर में 100,150 पूड़ी बेच के खुश हो लेते है।
क्युकी अब उनको सब्जी,अचार,चटनी फ्री में नही देनी पड़ती।
जय हो नत्थू राम जी की।
न प्रचार, न कोई एड
बस सूखी पूड़ी बेचे जाओ
प्रभु जी के गुण गाते जाओ।
आज तल हम घाटे में जा लए है।
पहले जैसी पूड़ी ( कॉमिक्स) नही बिक रही
😜😜😜